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बढ़िए कुछ और आगे…

ये जहां...
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ज़िंदगी के रंगमंच के एक और नाटक का पटाक्षेप हो रहा है। नए साल के साथ नयी पटकथा शुरु हो रही है। आशाए, अभिलाषाएं, उम्मीदें, वादे, घर, परिवार, दोस्ती, यारी, सभी के लिए ये वक्त नया है। अतीत पीछे छूटने दीजिए। भविष्य की डोर थामिये। भूलिए मत भूत में क्या हुआ। भविष्य में क्या करना है, ये ज़हन में बसाइये। इस बार एक बुनियाद बनाइये। जिसमें सच का सीमेंट हो। ईमानदारी का लोहा हो। अहसासों की ईंट हो। यदि ऐसा कर सके, तो उस पर बनने वाली इमारत सच्चे दोस्त सी होगी। जिसमें आप अपना हर सुख अपना हर दुख बांट सकेंगे। इस नेपथ्य से बाहर निकलिए। अंधेरे की जगह, रोशनी को दीजिए। ये सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेगी। अभिनय देखने से बेहतर अब ये है, कि अभिनय के मकसद को खुद में बसा लीजिए। दर्शक दीर्घा में अब आपकी जगह नहीं। आप मंच पर होने चाहिए। न्यूटन बनिए। नेपोलियन बनिए। असफलताओं से सीख लेने वाले लिंकन बनिए। हिंसा हल नहीं। अहिंसा रास्ता है। आगे बढ़िए। ज़िंदगी कांटों की सेज है तो क्या। इसी पर चलने वाले पांव घायल करके भी मुकाम तक पहुंचते हैं। गिरिए। संभलिए। उठिए। निढाल न होने दीजिए। क्योंकि आपकी सुस्ती दुश्मनों को मौका देती है। अगर गलतियां की। तो पश्चाताप कीजिए। प्रायश्चित पापों का निर्वाण है। प्रेमचंद से सीखिए। मुक्तिबोध से सीखिए। दिनकर से सीखिए। मधुशाला वाले हरिवंश से सीखिए। पर सतत् सीखने का प्रयास कीजिए। कोई भी छोटा, बड़ा संदेश दे सकता है।उम्र ज्ञान का पैमाना नहीं होती। तरक्की के रास्ते खुद तय कीजिए। सहारे की आस में अक्सर लोग बेसहारा हो जाते हैं। मदद मुहताज बना देती है। आप निरंतर चलेंगे तो मंज़िल को पाएंगे। आप थक जाएंगे तो रुक जाएंगे। ज़िंदगी का दर्शनशास्त्र हमें यही सिखाता है। बढ़िए कुछ और आगे । बाधाओं और बंदिशों के पार। इसी अहसास के साथ आपको नये साल की हार्दिक शुभकामनाएं। आप खुश रहें। लोग आपसे खुश रहें।

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